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अंडमान: लॉर्ड मेयो की हत्या
फरवरी १८७२ में, वाइसरॉय और भारत के गवर्नर जनरल, मेयो के छटवें अर्ल, रिचर्ड बुर्क, पोर्ट ब्लेयर में दंड बस्ती का निरीक्षण करने के लिए अंडमान आए। वाइपर और चेथम द्वीपों की अपनी यात्रा के बाद, वाइसरॉय ने हैरियट पर्वत पर भी जाने की माँग की । उनके साथ उनके सहायक सैनिक अधिकारी हेनरी लॉकवुड, उनका दल और मशालों के साथ चलते हुए कुछ भारतीय मूल के पहरेदार भी थे।
जैसे ही वाइसरॉय होप शहर के पहाड़ से नीचे उतरे, वैसे ही अचानक मार्ग पर अंधेरा छा गया। मशालें बुझ गई । लॉर्ड मेयो ने जल्द से जल्द अपने जहाज़ की सुरक्षा तक पहुँचने के लिए अपनी गति तेज़ कर दी।
कुछ ही मिनटों में, वाइसरॉय के दाईं ओर चलते हुए हेनरी लॉकवुड ने अचानक एक तेज़ छपाके की आवाज़ सुनी। मुड़ कर देखने पर उन्होंने प्रत्यक्षतः विचलित वाइसरॉय को पानी के अंदर अपने बालों को चेहरे पर से पीछे करते हुए देखा। जब वाइसरॉय को उनके निजी सचिव, मेजर ओवेन ट्यूडर बर्न द्वारा पानी से बाहर निकालने में मदद की गई और पोतघाट पर खड़े एक ट्रक के सहारे टिकाया गया, तब लॉकवुड को एहसास हुआ कि लॉर्ड मेयो के बाएं कंधे से खून बह रहा था। उन्होंने तुरंत अपना रूमाल घाव पर रख दिया और अन्य लोगों ने लॉर्ड मेयो के हाथ और पैर रगड़े ताकि उनके शरीर के अंदर खून का बहाव जारी रहे।वाइसरॉय को शीघ्र ही जहाज़ पर ले जाया गया।
उनके बाईं ओर, भारतीय मूल के पहरेदारों ने एक व्यक्ति को पकड़ लिया और उसकी पिटाई करने लगे । लॉकवुड लड़ाई रोकने के लिए तुरंत उधर भागे । यदि यह हस्तक्षेप नहीं होता, तो पिटाई का परिणाम बहुत ही घातक हो सकता था । उस भारतीय व्यक्ति को अब तक बाँधा जा चुका था। उस के गले में एक तख़्ती थी जिस पर लिखा था, शेर अली, क्र. १५५५७,आजीवन कारावास" ।
सबकी नज़रों से छुप कर, शेर अली ने रसोई का चाकू लिया और उसे वाइसरॉय के कंधे मे दो बार घोंपते हुए, उन पर हमला किया। स्टाफ़ सर्जन ऑलिव बार्नेट ने बाद में स्पष्ट किया कि ये दो १.५ इंच गहरे चीरे वाले घाव थे । इन दोनों में से एक ही घातक सिद्ध होने के लिए पर्याप्त था । उसी शाम ८:५० तक, वाइसरॉय को मृत घोषित कर दिया गया।
जब भारत सरकार के सचिव (विदेश विभाग) और बर्मा के मुख्य आयुक्त ने पूछा कि उसने वाइसरॉय को क्यों मारा, तो अली ने कहा
“मेरा नसीब, ख़ुदा ने हुकुम दिया इस वास्ते किया, मेरा शरीक कोई आदमी नहीं, मेरा शरीक ख़ुदा है!”
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के प्रांतीय न्यायलय को ९ फरवरी, १८७२ को महामहिम के वाष्प जलपोत, ग्लासगो पर एकत्रित किया गया । पोर्ट ब्लेयर के पुलिस अधीक्षक और उप-अधीक्षक द्वारा क्रमशः अदालती कार्यवाही कार्यान्वित की गई। २ भारतीय और १० यूरोपीय गवाह न्यायालय में पेश हुए और उन्होंने अपने विवरण प्रस्तुत किए, जिन सब ने, चुपचाप खड़े शेर अली पर एकमत से अभियोग लगाया । उन्होंने अली द्वारा इस्तेमाल किए गए हत्या के हथियार की भी पहचान की। इस सब से अधीक्षक को निर्णय लेने में आसानी हो गई ।
अली ने दोषी न होने का अभिवचन किया । उसने कहा, "ईश्वर जानता है, अगली दुनिया में खाता बनाया जाएगा और आप तब जानेंगे" (क्यों मैंने यह कृत्य किया)।
२२ फरवरी १८७२ को मुख्य न्यायाधीश सर रिचर्ड काउच और जज लुइस एस. जैक्सन ने, , "द क्वीन बनाम शेर अली, कैदी" में भारतीय दंड संहिता की धारा ३०२ के तहत पोर्ट ब्लेयर के अधीक्षक का शेर अली को मौत की सज़ा देने के निर्णय की पुष्टि की । अधीक्षक को मृत्यु की तारीख और साथ ही समय चुनने की स्वतंत्रता दी गई।
मेयो के छटवें अर्ल, ब्रिटिश भारत के एकमात्र वाइसरॉय थे, जिनकी हत्या पद पर रहते हुए की गई थी।